सत्य और असत्य

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सत्य व असत्यअनिल और सुनिल दोनों बहुत ही घनिष्ठ मित्र व सहपाठी भी थे। वे कक्षा - सात में पढ़ते थे। अनिल एक बुद्धिमान लड़का था। वह सत्य में विश्वास करता था। वह कभी असत्य नहीं बोलता था, जबकि सुनिल असत्य बोलने में विश्वास करता था। वह मानता था कि असत्य बोलने से सारे काम बनते हैं। हम असत्य बोलकर, बहाना बनाकर कहीं भी जा सकते हैं। कोई भी काम - काज कर सकते हैं। इसी बात को लेकर एक दिन उन दोनों में तू - तू, मैं - मैं छिड़ गयी।अनिल बोला-, "सत्य से कोई भी चीज बड़ी नहीं