संत श्री कबीरदास

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श्रीकबीरदासने भक्तिहीन षड्दर्शन एवं वर्णाश्रम धर्मको मान्यता नहीं दी। वे भक्ति से विरुद्ध धर्मको अधर्म ही कहते थे। उन्होंने बिना भजनके योग, यज्ञ, व्रत और दान आदि को व्यर्थ सिद्ध किया। उन्होंने अपने बीजक—रमैनी, शबदी और साखियों में किसी मतविशेष का पक्षपात न करके सभीके कल्याणके लिये उपदेश दिया। हिन्दू-मुसलमान सभी के लिये उनके वाक्य प्रमाण हैं। वे ज्ञान एवं पराभक्तिकी आनन्दमयी अवस्थामें सर्वदा स्थित रहते थे। श्रीकबीरदासजी ने किसी के प्रभावमें आकर मुँहदेखी बात नहीं कही। वे जगत्के प्रपंचोंसे सर्वथा दूर रहे सन्त श्रीकबीरदासजी का जीवन-चरित संक्षेपमें इस प्रकार है— उच्चश्रेणीके भक्तोंमें कबीरजी का नाम बहुत आदर और श्रद्धा