विराटज्योति ने राजमहल के बाहर आकर अपने सेनापति दिग्विजय सिंह को आदेश दिया कि वो सैनिकों को टुकड़ियों में विभाजित करना होगा तभी हम उस स्थान को सरलता से चारों ओर से घेर सकते हैं,जहाँ पर वे सभी दस्यु रह रहे हैं... "जी! महाराज! सारा कार्य योजनानुसार ही होगा,आप तनिक भी चिन्ता ना करें,हम सभी की विजय निश्चित है",सेनापति दिग्विजय सिंह बोले.... "जी! आप सभी से मैं ऐसी ही आशा रखता हूँ",विराटज्योति बोला... "जी! महाराज! हम आपकी आशा को निराशा में कदापि नहीं बदलेगें" सेनापति दिग्विजय सिंह बोले.... "तो चलिए! इस कार्य को सफल बनाने हेतु प्रस्थान करते हैं",विराटज्योति बोला....