सौभाग्य को चिन्मय के प्रति भाव कि अनुभूति में प्यार का समन्वय हो चुका था जब भी चिन्मय को देखती उसके मन मे भविष्य के लिए अनेको भवनाओं के ज्वार उठने लगते उसे लगता कि चिन्मय ही उसके अंतिम सांस का जीवन साथी है जिसे भगवान ने स्वंय सुगा के बहाने मिलाया है लेकिन उसे मालूम था कि उसका लगन राखु से तय हो चुका है और चिन्मय का उसके जीवन मे आना सामाजिक तौर पर सम्भव है । नही फिर भी सौभाग्य को विश्वास था कि शायद कोई चमत्कार हो जाय और चिन्मय उसके जीवन का खेवनहार बन