एक फकीर हुआ, अगस्तीन।एक फकीर हुआ, अगस्तीन। कोई तीस वर्षों से परमात्मा की खोज में था।भूखा और प्यासा, रोता और चिल्लाता और प्रार्थना करता। एक क्षण का विश्राम न लेता। जीवन का कोई भरोसा नहीं है। परमात्मा को पा लेना है। तो सब भांति के उपाय उसने किए। बूढ़ा हो गया था, थक गया था, परमात्मा की कोई प्राप्ति न हुई थी। कोई दूर, परमात्मा निकट नहीं आया। बुढ़ापा निकट आ रहा था, मौत करीब आ रही थी उतने ही प्राण और चिंतित होते जाते थे। एक दिन सुबह-सुबह ही…रात भर रो कर भगवान से प्रार्थना करता रहा कि कब