साथिया - 32

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उधर सौरभ दिल्ली से बस में बैठ गया गांव आने के लिए। उसका दिल बैठा जा रहा था किसी अनहोनी की आशंका से। "हे भगवान मेरे वहां पहुंचने से पहले कुछ भी गलत ना हो..!! मैं वहां पहुंच जाऊंगा तो कुछ भी नहीं होने दूंगा। कैसे भी करके नियति को बचा लूंगा। मैं अपनी बहन के साथ कुछ भी गलत नहीं होने दे सकता । कब तक गांव वाले अपने बिना मतलब के नियम कायदों में बांधकर लोगों की जान लेते रहेगें। लोगों को सजा देते रहेंगे।" सौरभ सोच रहा था और उसका बस चलता तो वह उड़कर गांव पहुंच