साथिया - 31

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नियति घबराओ मत यह एक छोटा शहर था जहां जल्दी जल्दी ट्रेन नहीं आती थी और उन्होंने दिल्ली जाने के लिए के लिए ट्रेन देखी थी जो कि थोड़ी देर बाद आने वाली थी पर उनकी बेचैनी और घबराहट बढ़ती जा रही थी तो वहीं नियति के आंसू लगातार निकल रहे थे। उसने कसके सार्थक का हाथ थाम रखा था पर उसे अब समझ में आ गया था कि उसका बचना मुश्किल है। तभी एक ट्रेन स्टेशन पर आई।" ये हमारी ट्रेन नही है। बस आधा घण्टे में ट्रेन आ जायेगी हमारी!" सार्थक बोला तभी नियति की नजर दूर खड़े