श्रीमद्भगवद्गीता मेरी समझ में - अध्याय 7

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अध्याय 7 ज्ञान-विज्ञान योग पिछले अध्याय के अंत में श्रीकृष्ण ने कहा था कि योग की अवस्था को प्राप्त करने का प्रयास करने वाला व्यक्ति यदि असफल भी होता है तब भी उसका अहित नहीं होता है। उसे अगले जन्म में अपना प्रयास जारी रखने का अवसर मिलता है। इस अध्याय के आरंभ में श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे पार्थ जो व्यक्ति पूर्णतया मेरे प्रति समर्पित रहता है वह मुझे पाने में सफल रहता है। वह अर्जुन से कहते हैं कि अब मैं तुम्हें वह ज्ञान प्रदान करूँगा जिसे पाने के बाद तुम्हारे लिए कुछ भी जानना शेष नहीं रहेगा।