प्रफुल्ल कथा - 22

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पाठकों ,आत्मकथा अधूरी रहेगी अगर मैं उस घटना का जिक्र नहीँ करूंगा जिसमें मुझे देश के प्रतिष्ठित औद्योगिक घराने टाटा ने सम्मानित किया था। अखिल भारतीय स्तर पर सम्पन्न प्रतियोगिता में मेरे साहित्यिक योगदान को पुरस्कृत और सम्मानित किया था।आपको कुछ अटपटा या फिर कुछ चटपटा सा लग सकता है मेरा यह वृत्तान्त का ।लेकिन ,यह मेरी जिन्दगी का एक रोमांचक सच है जिससे मैं आपको रू -ब- रू करा देना चाहता हूँ ।इसलिए भी कि 'न जाने किस घड़ी में जिन्दगी की शाम हो जाए..!'यह वाकया जिन दिनों का है उन दिनों मुझे आकाशवाणी की समूह 'ग' सेवा में