प्रफुल्ल कथा - 19

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मेरे जीवन में बाल्य काल से अभी तक साहित्य मेरे माथे का चन्दन बना रहा है। शायद यदि शरीर और मस्तिष्क ने साथ दिया तो जीवन के अंतिम क्षण तक इसका साथ बना रहे है। कोई क्यों लिखता है ? अगर वह नहीं लिखता तो क्या हो जाता ? या कि , लिखना उसका व्यसन है ,शौक है ,अनिवार्यता है , प्रतिबद्धता है ,उसकी उँगलियों , उसके विचार या भावनाओं की खुजली है ? ये या इन जैसे तमाम यक्ष प्रश्न आपके , हम सबके मन में उठ सकते हैं | इनके उत्तर भी अलग - अलग हो सकते हैं