मंदिर के पट - 10

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रात भीगती गई । एक बज गया । वह प्रतीक्षा करते करते थक कर मुंडेर पर सिर रखे अपनी नींद से बोझिल पलकों को आराम देने लगा । कितनी देर सोया कुछ पता न चला । एक हल्की सी आहट से उसकी आंखें खुल गयीं । उसने देखा - उसके चारों ओर सफेद बादलों का एक टुकड़ा मडरा रहा था । उसने उठने का प्रयत्न किया लेकिन सफल न हो सका । जैसे शरीर अपने स्थान पर जड़ हो गया था । वह अपने हाथ पांव भी नहीं हिला सकता था । थोड़ी देर में बादलों के उस टुकड़े की