रजत का मन बार-बार मंदिर की ओर खिंचा जा रहा था । वह गेंदा सिंह से कहकर मंदिर की ओर बढ़ गया । मंदिर तक जाने के लिए उसे कुल उन्चास सीढ़ियां तय करनी पड़ीं । मंदिर के पट जो नीचे से देखने पर खुले प्रतीत हो रहे थे वस्तुतः बंद थे । उनका काला रंग कहीं-कहीं से उखड़ गया था । मंदिर की दीवारें पत्थर की थीं जिन पर सुंदर नक्काशी की गई थी । ऊपर गोल गुंबद और फिर ऊंची लंबी चोटी पर रखा हुआ पीतल का कलश जो धूप में सोने का भ्रम उत्पन्न कर रहा था