महाराज 'अङ्ग' की पत्नी सुनीथा, जो साक्षात् मृत्यु की कन्या थीं, उससे 'वेन' नामक पुत्र हुआ, जो अपने नाना मृत्यु के स्वभाव का अनुसरण करने के कारण अत्यन्त क्रूर कर्म करनेवाला हुआ। फलस्वरूप उसकी दुष्टता से उद्विग्न होकर राजर्षि अंग नगर छोड़कर चले गये। राजा के अभाव में राज्य में अराजकता न फैल जाय, इसलिये ऋषियों ने और कोई उपाय न देखकर वेन को अयोग्य होने पर भी राजपद पर अभिषिक्त कर दिया। स्वभाव से क्रूर, ऐश्वर्य पाकर अत्यन्त उन्मत्त, विवेकशून्य वेन जब धर्म एवं धर्मात्मा पुरुषों को विनष्ट करने पर तुल गया और ऋषियों के समझाने पर भी समझना