बालिपुत्र अंगद

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वनवासके समय भगवती जानकीका अन्वेषण करते हुए मर्यादापुरुषोत्तम ऋष्यमूकपर पहुँचे। वहाँ उन्होंने सुग्रीव से मित्रता की। सुग्रीव का पक्ष लेकर उन्होंने वानरराज बालि को मारा। मरते समय बालि ने अपने पुत्र अंगदको उन सर्वेश्वरके चरणोंमें अर्पित किया। बालि ने कहा:यह तनय मम सम बिनय बल कल्यानप्रद प्रभु लीजिए। गहि बाँह सुर नर नाह आपन दास अंगद कीजिए। –(रा०च०मा० ४।१०। २ छं० )प्रभुने अंगद को स्वीकार किया। सुग्रीव को किष्किन्धा का राज्य मिला, किंतु युवराजपद बालिकुमार अंगदजी का ही रहा। अंगदने भगवान्की इस कृपा को हृदय से ग्रहण किया। श्रीसीताजी को ढूँढ़ते हुए जब वानर-वीरों का दल दक्षिण समुद्रतटपर पहुँचा और