निर्मला एक छोटे से गाँव की सीधी सादी लड़की थी। वह पढ़ने में बहुत ही तेज थी और आगे पढ़कर जीवन में तरक्क़ी करना चाहती थी। लेकिन गाँव में आठवीं के आगे स्कूल न होने के कारण उसे पढ़ाई छोड़ देनी पड़ी। इस बात का दुख निर्मला के मन में एक कसक बनकर हरदम चुभता ही रहता था। उसने अपने बाबूजी धीरज से कहा, "बाबूजी मुझे शहर भेज दो ना, मैं आगे और पढ़ाई करना चाहती हूँ।" उन्होंने इनकार करते हुए कहा, "नहीं बेटा, शहर की लड़कियों जैसा नहीं बनाना है तुझे। आठवीं तक पढ़ ली ना, अनपढ़ तो नहीं