107---- =============== कुछ तो था जो मुझे परेशान कर रहा था लेकिन पता नहीं क्या था?यह सब पता था प्रमेश के घर पर हैं, अम्मा-पापा यानि हम सब,मेरे हाथों में मंहगे रत्नजड़ित कंगन झिलमिला रहे थे | सामने प्रमेश और उसकी बहन भी थे, कुछ अजीब था लेकिन क्या? मस्तिष्क जैसे कुछ सोचने का काम कर ही नहीं पा रहा था | हँसी-खुशी खाना खत्म हुआ, सब आकर फिर से सुसज्जित सिटिंग रूम में बैठ गए| “आज मेरा मनोकामना पूरा हुआ, जय देबी माँ, तुम्हारा ही सहारा है|”प्रमेश की दीदी ने जब हर बात में माँ को पुकारना शुरू किया