गुलदस्ता - 19

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               ११८ कलियोंने हलकेसे फुलों को कहाँ बताओ तो जरा, कैसे दिख रही है दुनिया, तुम्हारे खिल जाने से क्या लोगों के चेहेरे खिल गए है ? तुम्हारी सुगंध से उनके आँगन महक उठे है ? यह जानकर क्या लोग तुम्हे सहला रहे है ? फुलोंने हँसकर उनसे कहाँ अरे पगली, हम दुनिया के लिए नही खिलते है अपना वजुद है खिलना तो उसके लिये जीते है किसी ओर की तरफ तुम अपनी खुषी ढूँढोगी तो तुम्हारा खिलना व्यर्थ हो जाएगा तुम सिर्फ अपने लिये खिलो हवाँ का आनंद लो भँवरों की गुनगूनाहट सुनो और शाम को हलकेसे जमिन