पूरे रास्ते हम तीनों में से कोई कुछ नहीं बोला | सबके मुँह में जैसे ताले पड़ गए थे | अजीब सी मानसिक स्थिति में चक्कर खाते हम तीनों ही मानो किसी विचित्र सी दुनिया में से लौटकर आए थे | मैं कहाँ थी? पहले भी तो मैं शून्य ही थी अब तो जैसे गहरे गड्ढे में जा गिरी थी | क्या उसमें से ऊपर आने के लिए कोई सीढ़ियाँ थीं अथवा कोई ऐसा रस्सी पकड़ने वाला जो मुझे ऊपर खींच लेता और अपनी बाहों में भरकर मुझे लोरी सुनाकर चैन की नींद सुला देता | नींद तो पहले से