मैं तो ओढ चुनरिया - 52

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  मैं तो ओढ चुनरिया    52     ये मामू मुझे बहुत प्यार करते थे । पिछले पंद्रह बीस साल से वे हमारे साथ रह रहे थे । हर रोज बर्फी और रबड़ी का दोना मेरे लिए आता रहा । हर साल जैसे ही नतीजे आते , वे हर रोज काम से लौटते ही पिताजी से पूछते – रवि आज पपले की किताबें नहीं खरीदी । इस बीच मजूरी के पैसे मिलते तो गत्ते , अबरी और किरमिच खरीद लाते । जिस दिन किताबें घर आती उनकी काम से छुट्टी हो जाती । माँ लाख कहती , काम पर