मुसद्दी - एक प्रेम कथा - 2

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2️⃣ अब ये मुसद्दी के मन मे माँ का सम्मान था या बाबु जी के गुजरने के बाद अम्मा , को मिलने वाली पेंशन का कमाल पर निठल्ले मुसदद्दी की मातृ भक्ति देख कर पल भर को आँखे नम हो गई थी। थोड़ी शान्ति के बाद मुसद्दी भी पाइप मे रखी कुत्ते की दुम सरीखे लय मे आ गये । पर आज मुसद्दी हमारे पड़ोस के बड़े चक्कर काट रहे दिखे। माथा सनका, आज मुसद्दी नहाए धोए भी जान पड़े और थोड़ा तमीज मे भी। बदले मिजाज का मर्म समझ न आया। जब दिमाग के घोड़े दौडायें तब थोड़ी हरियाली