शहरी बाबू

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वाजिद हुसैन की कहानी बसन्त के महीने में मेरी नियुक्ति ऋषिकेश के सरकारी अस्पताल में हुई थी। एक छुट्टी ‌‌के दिन सवेरे न गर्मी ज़्यादा थी और न सर्दी।... मैदान के खेतों और गांवों में लोग बसंत ऋतु की ख़शियां मना रहे थे। वृक्षो की हरियाली व कोपलों से ढकी पहाड़ी ढलाने, हरी मखमली सीढ़ियां जैसी प्रतीत होती , मानो ऋतु के स्वागत के लिए स्वर्ग से भूतल तक प्रशस्त मार्ग बना हो। ... हिंसक जंतुओं ने अपनी मांदो को छोड़ा‌, पक्षियों ने बसेरा लेना शुरू किया था। मैं मंत्रमुग्ध होकर ढलान पर चढ़ने लगा। किसी लड़की के लोकगीत की