फिर दूसरे दिन हमारे बड़े अब्बू ही दोपहर के समय डिस्पेन्सरी पहुँच गए,वो गर्मियों की दोपहर थी,सीलिंग फैन आग के थपेड़े मार रहा था,डाक्टर सिंह ने कमरें की खिड़की में लगे काँच से बाहर देखा कि कोई कार आकर डिसपेन्सरी के सामने रुकी है और एक भद्र बूढ़ा मुसलमान कार से उतरकर हाथ में कीमती छड़ी के सहारे धीरे धीरे डिसपेन्सरी की सीढ़ियाँ चढ़ रहा है.... उसकी कार निहायत कीमती दिख रही थी ,उस वृद्ध अमीर मुसलमान की आयु लगभग अस्सी बरस रही होगी,लम्बा छरहरा कमनीय शरीर अब सूखकर झुर्रियों से भर गया था,कमर भी झुक चुकी थी,अब उनकी खुद