कुछ दिनों बाद मैंने उनके मायके में एक दाईमाँ की निगरानी में अपने बेटे को जन्म दिया,उनका मायका अत्यधिक सम्पन्न था,मुझे वहाँ केवल पन्द्रह दिन ही रहने दिया गया और उन्होंने मेरे बच्चे को ले लिया फिर मुझे वापस भेज दिया,मैं अपने बच्चे के संग वहाँ और कुछ दिन रहना चाहती थी लेकिन स्नेहलता इस बात के लिए हर्गिज़ राज़ी नहीं थीं,वे नहीं चाहतीं थीं कि बच्चे पर मेरी ममता हावी हो जाए और फिर मैं उसे छोड़ ना पाऊँ,मैं उनके सामने रोती रही बिलखती रही लेकिन उन्हें मुझ पर एक भी दया ना आई.... मैं फिर से गुलबदन खालाज़ान