फिर ऐसे ही कुछ रोज बीते लेकिन वें मेरा मुजरा देखने नहीं आए और ना ही उनके दोस्त मोहन लाल पन्त मेरा मुजरा देखने आएँ,उनके दोस्त ही आ जाते तो मैं उनसे उनकी खैरियत पूछ लेती और जब वे नहीं आए तो मैं एक शाम उनके कमरे फिर से पहुँची और अपने कमरें में मुझे देखकर वो बिफर पड़े फिर मुझसे बोले... "आप यहाँ फिर से आ गईं,भगवान के लिए यहाँ से चली जाइए", "लेकिन क्यों"?,मैंने पूछा... तो वे मुझसे बोले.... "लोग आपके और मेरे बारें में कहीं गलत ना सोचने लगे,इसलिए मैं नहीं चाहता कि आप मुझसे मिलें" "लेकिन