अन्धायुग और नारी - भाग(३३)

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वे चले गए तो मुझे ऐसा लगा कि शायद उन्हें मेरी बात का बहुत बुरा लगा है,उन्होंने तो मेरे लिए गलत अल्फाज़ों का इस्तेमाल किया था लेकिन मैंने भी कहाँ कोई कसर छोड़ी उन्हें बातें सुनाने में,इसलिए उस बात का मुझे अब बहुत अफसोस हो रहा था और मैं मन ही मन सोचने लगी कि काश वे थोड़ी देर और रुक जाते तो मैं उनसे माँफी माँग लेती लेकिन ऐसा ना हो पाया और मैं खुद की हरकत पर बहुत शर्मिन्दा हुई.... खैर उस रात जो हुआ मैंने उसका अफसोस ना मनाने में ही अपनी समझदारी समझी,क्योंकि उस बात को