साथिया - 27

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नियति ने सोचा कि उस कागज को फेंक दें पर ना जाने क्या सोचकर उसने धीरे से अपने बैग में छुपा कर रख लिया और गहरी सांस ली। दिल की धड़कन बेतहाशा दौड़ रही थी और आज पहली बार ना चाहते हुए भी नियति की कदम उस रास्ते पर चल दिए थे जिस पर ना चलने की उसने कसम खा रखी थी। उधर नेहा सांझ के हॉस्टल पहुंची और सांझ को देखते ही उसके गले लग गई। "कैसी है सांझ?" नेहा ने खुश होकर पूछा। "बस ठीक हूं दीदी आपका इंतजार सुबह से कर रही हो इतने दिन हो गए