साथिया - 23

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नियति बस में तो बैठ गई पर उसका पूरा ध्यान सार्थक और उसकी बातों पर ही था। उसके दिल में भी सार्थक के लिए फीलिंग थी और बस वह अपने परिवार से डर के कारण उससे दूर रहना चाहती थी, और उसका डर गलत भी नहीं था। वह जिस गांव और जिस माहौल से थी वहां प्यार मोहब्बत की कोई कीमत नहीं थी। बड़ी मुश्किल से और बहुत हाथ पैर जोड़ने के बाद तो उसे शहर में आकर पढ़ने की परमिशन मिली थी। उसके पिता गजेंद्र सिंह खुद को गांव का भाग्य विधाता समझते थे तो वही निशांत भी उनके