श्री जटायुजी

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श्रीजटायुजी प्रजापति कश्यपजी की पत्नी विनता से दो पुत्र हुए-अरुण और गरुड़। इनमें से भगवान् सूर्य के सारथि अरुणजी के दो पुत्र हुए—सम्पाति और जटायु। बचपनमें सम्पाति और जटायु उड़ानकी होड़ लगाकर ऊँचे जाते हुए सूर्यमण्डल के पासतक चले गये। असह्य तेज न सह सकने के कारण जटायु तो लौट आये; किंतु सम्पाति ऊपर ही उड़ते गये। सूर्य के अधिक निकट जानेपर सम्पातिके पंख सूर्य-तापसे भस्म हो गये। वे समुद्रके पास पृथ्वी पर गिर पड़े। जटायु लौटकर पंचवटीमें आकर रहने लगे। महाराज दशरथ से आखेटके समय इनका परिचय हो गया और महाराजने इन्हें अपना मित्र बना लिया। वनवासके समय जब