प्रफुल्ल कथा - 16

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मेरे पाठकों , मैं इस समय अपनी उम्र की सत्तरवीं सीढ़ी पर पहुँच चुका हूँ | अब सब कुछ समेटने का समय आ चला है तो उन सभी का शुक्रिया अदा करना भी अपना धर्म बनता है जिन्होंने मुझे सांप बनकर काटना चाहा ...(और मुझे बच निकलने की सीख मिली ) .तो सीढियों की तरह अभी सहारा बनकर माँ की थपकियों जैसी थपकियाँ देकर दुलराया , सांत्वना दिया कि संकट क्षणिक आपदा होती है उससे डरो नहीं उसका सामना करो , पिता की तरह हमेशा अच्छी राह दिखाई , भाई की तरह टूटने के दौर में अपना कंधा दिया और