प्रफुल्ल कथा - 14

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उन दिनों गोरखपुर की दुनिया बहुत सीमित हुआ करती थी | एक ओर एयर फ़ोर्स स्टेशन शहर का आखिरी छोर माना जाता था तो दूसरी ओर तुर्कमानपुर | एक ओर रुस्तमपुर ढाला तो दूसरी ओर आम बाज़ार और फिर आगे चलकर मेडिकल कालेज | सायकिल आवागमन की मुख्य सवारी हुआ करती थी और आप सायकिल उठाकर कुछ ही देर में पूरा शहर नाप सकते थे | लगभग आधे शहर में रामगढ़ ताल अपने घने शैवाल के साथ शबाब बिखेरा करता था | राप्ती नदी शहर का श्रृंगार बनकर अपनी समृद्ध जल भंडारण पर इतना इतराती थी कि वर्षाकाल में बाढ़