महर्षि वाल्मीकि

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प्रियादासजी नाभा जी के हार्दिक भाव को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि अहो! यदि मुझे बार-बार जन्म लेकर संसार में आना पड़े तो इसकी मुझे कुछ भी चिन्ता नहीं है, क्योंकि इससे बड़ा भारी लाभ होगा कि सन्तों के चरणकमलों की रज सिर पर धारण करने का शुभ अवसर मिलेगा। प्राचीनबर्हि आदि भक्तों की कथाएँ पुराण-इतिहास में वर्णित हैं, परंतु महर्षि वाल्मीकि और श्वपचभक्त वाल्मीकि-इन दोनों की कथा को चित्त से कभी दूर नहीं करना चाहिये। महर्षि वाल्मीकि पहले भीलों का साथ पाकर भीलों का-सा आचरण करने वाले हो गये। फिर ऋषियों का संग पाकर ऋषि हो गये। उन्हें