एक योगी की आत्मकथा - 39

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ईसा-क्षतचिह्न-धारिणी कैथोलिक संत टेरेसा नॉयमन—“भारत लौट आओ। पन्द्रह वर्षों तक मैंने धीरज के साथ तुम्हारी प्रतीक्षा की है। शीघ्र ही मैं शरीर त्याग कर अनंत धाम चला जाऊँगा । योगानन्द, चले आओ!” एक दिन जब मैं माऊण्ट वाशिंगटन स्थित अपने आश्रम में ध्यान कर रहा था, तब अचानक आश्चर्यजनक रूप से श्रीयुक्तेश्वरजी की आवाज़ मुझे अपने अन्तर में सुनायी दी। दस हज़ार मील की दूरी को पलक झपकते ही पार कर उनके सन्देश ने बिजली की भाँति मेरे अन्तर में प्रवेश कर लिया।पन्द्रह वर्ष! हाँ, मुझे एहसास हुआ यह सन् १९३५ है। मैंने अमेरिका में अपने गुरुदेव की शिक्षाओं का