गाँव की वह छोटी सी सुखिया बड़ी होते-होते शहर की जानी मानी सुखी मैम बन गई; जिसकी बनाई मिट्टी की सभी वस्तुएँ ख़ूब बिकती थीं। अपनी बेटी की सफलता देखकर वैजंती को याद आता कैसे सुखिया ने एक दिन उससे गिड़गिड़ाते हुए कहा था, 'अम्मा मुझे मना मत करो, कोशिश तो करने दो' यह सोचते ही वैजंती को लगता, अच्छा हुआ जो उसने सुखिया को उसकी मर्जी से यह सब करने दिया। आज उसकी सुखिया, सुखिया से सुखी मैम बन गई है। एक शो रूम तो सागर ने सुखिया को दिया ही था लेकिन शहर में अगला शो रूम सुखिया