उजाले की ओर –संस्मरण

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ज़िंदगी झौंका हवा का! =============== स्नेहिल नमस्कार साथियों संसार में आपाधापी हम सब देख ही रहे हैं| उम्र की इस कगार तक आते-आते न जाने कितने बदलाव, कितने ऊबड़-खाबड़, कितने प्लास्टर उखड़ते हुए देख लेते हैं हम! पल-पल में दुखी भी होने लगते हैं | जैसे कोई पानी का रेला बहा ले जाता है समुंदर पर बच्चों द्वारा बनाए गए रेत के घरों को और बच्चे रूआँसे हो उठते हैं, ऐसी ही तो है हम सबकी ज़िंदगी भी! कभी पानी के रेले से पल भर में जाने कितनी दूर जा पहुँचती है कि नामोनिशान भी नज़र नहीं आता|  कभी बुलबुले