प्रेम गली अति साँकरी - 102

  • 2.5k
  • 972

102 ---- ================= मुझे बाहर ही खड़ा करके प्रमेश बर्मन अपनी गाड़ी लेने अंदर चला गया | मुझे फिर उत्पल याद आ गया | कैसा नाटक करता है वह जब कभी उसके साथ मेरा बाहर जाना होता है | मुझे उसकी इन्ही बातों से ही तो प्यार हो गया था| जाने कितनी बार चुपके से कानों में फुसफुसा देता; “आपकी माँग भरने का मन करता है----” फिर मुँह घूम लेता|  “क्या—क्या कह रहे हो उत्पल ? ज़ोर से बोलो न, कुछ सुनाई नहीं दिया---”मैं सब सुन लेती थी वह कितनी भी धीमे से बोले तब भी लेकिन दिखाती ऐसे थी