पाजेब

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उसके बाहर आने तक मोबाइल चार बार बज चुका था।सुबह-सुबह कौन इतना बेताब है... लगभग झींकते हुए,आधा गीला बदन लिये वह बाथरूम से तौलिया लपेटते-लपेटते बाहर आया।चारों मिस्डकॉल अमृतसर में उनका पड़ोसी और उसके बचपन के साथी बलजीत की थीं।उसका माथा ठनका, वह पिछले हफ़्ते ही तो लौटा है अमृतसर से,फिर... अपने या उसके बीजी-बाऊजी के बारे में कुछ होता तो अमर करता फोन...कुछ सोचते हुए उसने फोन मिलाया लेकिन घण्टी बजती रही।बन्द होते ही फिर फोन बजा,बलजीत ही था।"वीरे..." बलजीत का स्वर दबा हुआ था।" की गल्ल जीते,सुख ते है?" " वीरे,घर आ जा..." वह रुक गया।" जीते, बीजी