डॉ प्रभात समीर इतवार का दिन था। लगभग शाम के 6 बजे का समय था। मेहरा और मिसिज़़ मेहरा अपने घर के लॉन में बैठे शाम की चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे कि तभी उन्हें अपने टामी के अजीब तरह से रोने की आवाज़ सुनाई दी। वह अक़्सर इस तरह रोया नहीं करता। किसी विपत्ति की आशंका से दोनों उसकी तरफ़ भागे। कुछ देर पहले ही तो उनका टामी बॉल से खेल रहा था, बल्कि मिसिज़ मेहरा खुद भी उसके साथ खेलने में लगी हुई थीं। इधर उन्होंने चाय पकड़ी, उधर उसने बॉल छोड़कर पूरे लॉन का चक्कर लगा