साथिया - 17

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उधर कॉलेज में। सांझ एक कोने की तरफ बैठी एक सुनहरे रंग की डायरी में कुछ लिख रही थी।" प्यारी दैनंदिनी तुम जानती हो बचपन से ही हर बात तुमसे कहने की आदत है क्योकि कोई सुनने वाला नही था। मम्मी पापा के जाने के बाद कौन था जो मुझसे बात करता मुझे सुनता। कभी कभी जीजी सुनती थी पर उनकी अपनी अलग दुनिया है।कॉलेज आये कितना समय हो गया। गाँव से यहाँ आकर मानो खुद से ही पहचान हो गई है। कितना मुश्किल होता है किसी पर आश्रित रहकर जीवन जीना। भले चाचा जी अभी भी खर्चा दे रहे