(96)सेल में अकेले बैठे हुए ललित बीते हुए दिनों को याद कर रहा था। अपने पिता की मौत होने के बाद उसने उनकी जमा पूंजी भी लुटा दी थी। पर अपनी किस्मत में लिखे राजयोग की राह अभी तक उसे नहीं मिली थी। अब वह बहुत हताश था। जो वह चाहता था हो नहीं पाया था। पर वह अभी भी अपनी किस्मत में लिखे राजयोग को सच मानता था। उसका सोचना था कि कोई ना कोई ऐसा रास्ता ज़रूर होगा जो उसे वह सब दिला देगा जिसकी उसे चाह है। लेकिन वह रास्ता उसे मिल नहीं रहा था। वह इस