कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(६७)

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अन्ततः वो कुशाग्रसेन से बोला.... "कुशाग्रसेन! अब तुम सीमाओं का उलंघन कर रहे हो" तब महाराज कुशाग्रसेन बोले.... "मैं भला क्यों सीमाओं का उलंघन करने लगा गिरिराज!,ये सत्य नहीं है क्या कि तुम और तुम्हारा पुत्र पूर्ण समय सुरा एवं सुन्दरी में लिप्त रहते हो,जिस राज्य का राजा ऐसा हो तो उस राज्य के सैनिकों एवं प्रजा से आशा ही क्या की जा सकती है,क्या मैं सत्य नहीं कह रहा,तुमने कभी सोचा कि जब रात्रि को तुम अपनी विलासिता में लिप्त रहते हो तो तुम्हारे सैंनिक कुछ और ना सही मदिरापान तो कर ही सकते हैं", "ये कैसें सम्भव है?