पड़ाव

  • 3.2k
  • 1.1k

पड़ाव *** उसने रोहित को अपने दिल का भगवान और अपना देवता समझते हुए यद्दपि उसकी पूजा की थी। जीवन के हरेक नये दिन में अपने पवित्र प्रेम की माला से उसकी आरती उतारी थी, तो रोहित ने उसके प्यार की तपस्या को चलती हुई राह का कोई सुन्दर फूल समझकर तोड़ भी लिया था। *** अचानक टैक्सी रूकी तो वेदना ने खिड़की का शीशा खिसकाकर जैसे ही बाहर झाँका तो तुरन्त ही जाड़े की बर्फ के समान ठन्डी-ठन्डी हवा उसके कोमल गालों पर सुईंयां सी चुभाने लगी। मगर फिर भी ठन्डी वायु की परवाह किये बगैर वह टैक्सी से