जब सारन्ध ने पिंजरे को अपने हाथों में पकड़ा तो उसने मैना बनी धंसिका से वार्तालाप करना प्रारम्भ किया तो मैना बनी धंसिका को इतनी प्रसन्नता हुई कि वो प्रसन्नता के कारण रो पड़ी,अपने पुत्र को इतने वर्षों के पश्चात देखकर उसके हृदय में दबी ममता जाग उठी और उसका जी चाहा कि वो अपने युवा पुत्र को अपने हृदय से लगाकर ये कहे कि...... " मैं ही तुम्हारी जननी हूँ पुत्र!,इतने वर्षों तक तुमसे दूर रहकर मैंने कैसें अपना समय बिताया है ये केवल मैं ही जानती हूँ,तुम्हारे बालपन की स्मृतियों को मैं कभी भी अपने मन से नहीं