सत्यवादी हरिश्चंद्र - 2 - स्वप्न-दान

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..स्वप्न-दान.. ‘‘सावधान! महातेजस्वी रघुकुल शिरोमणि दानवीर, शूरवीर, सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र दरबार में पधार रहे हैं।’’ इसी के साथ तुमुलघोष हुआ और सभी दरबारीगण उठ खड़े हुए। फिर समवेत् स्वर में एक जयघोष हुआ, ‘‘सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की जय!’’ राजा हरिश्चंद्र के मुखमंडल पर सूर्य जैसा तेज था। उनकी गौरवर्ण बलिष्ठ देह से पराक्रम स्पष्ट झलक रहा था। प्रजा अपने प्रिय सम्राट् पर पुष्पों की वर्षा कर रही थी और उनकी जय-जयकार कर रही थी। राजा हरिश्चंद्र अपने सिंहासन पर विराजमान हुए और जय-जयकार करती प्रजा को वात्सल्य से निहारा एवं हाथ उठाकर सबको इस सम्मान के लिए आभार प्रकट किया।