श्रीब्रह्माजी, श्रीनारदजी, श्रीशंकरजी, श्रीसनकादिक, श्रीकपिलदेवजी महाराज, श्रीमनुजी, श्रीप्रह्लादजी, श्रीजनकजी, श्रीभीष्मपितामहजी, श्रीबलजी, महामुनि श्रीशुकदेवजी और श्रीधर्मराजजी—ये बारहों भगवान्के अन्तरंग सेवक हैं, जो इनके यशको सुनें और गायें, उन सभी श्रोता और वक्ताओंका आदिसे अन्ततक सर्वदा मंगल हो। अजामिलके प्रसंगमें धर्मराजका यह परमश्रेष्ठ निर्णय जानिये कि इन्हींकी कृपासे और दूसरे भक्त भक्तिके रहस्योंको समझते हैं, ये द्वादश प्रधान भक्त हैं द्वादश प्रधान महाभागवतोंमें श्रीब्रह्माजी अग्रगण्य हैं। श्रीमद्भागवतजीमें भी यमराजजीने अपने दूतोंसे परमभागवतोंका वर्णन करते हुए श्रीब्रह्माजीकी गणना सर्वप्रथम की है, यथा— स्वयम्भूर्नारदः शम्भुः कुमारः कपिलो मनुः। प्रह्लादो जनको भीष्मो बलिर्वैयासकिर्वयम्॥ द्वादशैते विजानीमो धर्मं भागवतं भटाः। गुह्यं विशुद्धं दुर्बोधं यं ज्ञात्वामृतमश्नुते॥अर्थात् भगवान्के द्वारा