कोल्लिनगर (केरल) के राजा दृढव्रत बड़े धर्मात्मा थे, किंतु उनके कोई सन्तान न थी। उन्होंने पुत्र के लिये तप किया और भगवान् नारायण की कृपा से द्वादशी के दिन पुनर्वसु नक्षत्रमें उनके घर एक तेजस्वी बालक ने जन्म लिया। बालक का नाम कुलशेखर रखा गया। ये भगवान् की कौस्तुभमणि के अवतार माने जाते हैं। राजा ने कुलशेखर को विद्या, ज्ञान और भक्ति के वातावरणमें संवर्धित किया। कुछ ही दिनोंमें कुलशेखर तमिल और संस्कृत भाषामें पारंगत हो गये और इन दोनों प्राचीन भाषाओं के सभी धार्मिक ग्रन्थों का उन्होंने आलोडन कर डाला। उन्होंने वेद—वेदान्तका अध्ययन किया और चौंसठ कलाओंका ज्ञान प्राप्त