कुरुक्षेत्र की पहली सुबह - 28

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28.विशिष्ट व्यक्ति में होती है व्यग्रता हजारों मनुष्यों में कोई एक वास्तविक सिद्धि के लिए यत्न करता है और उन यत्न करने वाले साधकों में से कोई एक ही मुझे तत्त्व से जानता है।  अर्जुन ने हाथ जोड़कर कहा- हे प्रभु!आप स्वयं सभी तरह की कलाओं, ज्ञान-विज्ञान, दर्शन, साहित्य, मीमांसा, योग- वैराग्य, ज्ञान -भक्ति आदि सभी के स्रोत हैं। हम साधक लोग आप को जितना जान पाते हैं, वह इस धरती पर प्रकट होने वाली आपकी लीलाओं के माध्यम से ही है। वह भी आपकी प्रकृति का केवल एक ही अंश है केशव। मुझे आपके स्वरूप को संपूर्ण तत्व के