उजाले की ओर –संस्मरण

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उजाले की ओर - - - संस्मरण =================== स्नेहिल नमस्कार मित्रों को "भई, क्या हो गया ऐसा जो इतने बुरी तरह बिफरे हुए हो" ? बात ज़रा सी थी, सामने फ़्लैट के निवासी ने औटोरिक्षा में बैठने से पहले मीटर चैक नहीं किया और घर पहुंचकर उनमें और रक्षा वाले भैया में जमकर हंगामा शुरू हो गया जिसका किसी प्रकार कोई औचित्य था ही नहीं। जीवन कभी आवेग के क्षण ले आता है, कभी उत्साह के, कभी कष्ट के यानि जीवन अपने रूप में बदलाव करता ही रहता है, हर पल और उन बदलाव के पलों में हमारी परीक्षा होती