गुलदस्ता - 13

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गुलदस्ता १३                  ७४ आंखों की गहराई से शाम, झील में उतरती गई सांसों की लयकारी में समाती चली गई नसनस की लंबाई नापते अंदर चलती रही हृदय के गुढ अंधेरे में उपर नीचे होती रही देखी उसने तप्त भुख की अग्निज्वाला पेट में तडफडाए रस के लाव्हा सुरमई शाम, यह सब देख के , आखों के आँसूओं से बाहर आ गई रात का सन्नाटा और गहरा करते वह सृष्टी दृष्टी से ओझल हो गई .................................          ७५ ब्रम्हाण्ड के चैतन्य से अणू रेणु एकरूप हो गए फिर भी एक बिंदु