इंस्टालमेंट - 2

  • 3.5k
  • 987

इन्सान की ख्वाइशे कभी कम नहीं होती l ग़ालिब फरमा गए है ना, "बहुत निकले मेरे अरमां फिर भी कम निकले", वगेरा वगेरा...l तभी तो इन्सान हर किसम का जोर लगाकर सपने या जरुरत पूरी करने का तरीका ढूंडता रहता है l खुद से बन पड़े वह सारी कोशिश करता है l चाहे जेब में फूटी कोडी हो या ना हो, दिमाग के परदे पर अगर कार खरीदने की फिल्म चल रही होती है l इन्सान की हर ख्वाइश-जरुरत जिसे पूरा करने में रुपया पैसा लगता है, उसके लिए लोन नामक एक सहूलियत मौजूद है अभी के वक्त में l सोना