अन्धायुग और नारी--भाग(१८)

  • 3.3k
  • 1.7k

जब उदयवीर ने रुपयों की थैली में आग लगा दी तो चाचाजी गुस्से में उदयवीर से बोलें..... "मूर्ख! ये क्या तूने? कोई रुपयों में आग लगाता है भला!", "लेकिन मैं ऐसे रुपयों में आग लगा देता हूँ,जो रुपए मेरा ईमान खरीदना चाहे",उदयवीर बोला.... "बड़ा घमण्ड है तुझे तेरी ईमानदारी पर",चाचा जी बोले... "हाँ! है घमण्ड! तो क्या करोगें"?,उदयवीर बोला.... "अगर ऐसा घमण्ड रुपयों से नहीं खरीदा जा सकता तो मैं घमण्ड करने वाले को ही मसल देता हूँ,", चाचाजी बोलें.... "वो तो वक्त ही बताऐगा ठाकुर सुजान सिंह कि कौन किसे मसलता है",उदयवीर बोला.... "तुझे मालूम नहीं है कि तूने